कहा जाता है कि जब भगवान आदमी को बना चुका तब उसने अपना फावड़ा उसके चेहरे पर उलट कर रख दिया जिससे आदमी की नाक बन गयी। और इस तरह आदमी के चेहरे पर नाक के तैयार होते ही भगवान ने उससे विदा ले ली। इधर आदमी नाक के चक्कर में उलझ गया। दुनिया नाक को बहुत बड़ी चीज के रूप में गिनती है। एक तरफ अपनी नाक बचाने के चक्कर में आदमी की दुनिया सुलझने के बजाय उलझती ही चली गयी, दूसरी तरफ आदमी रूहानी रोशनी से महरूम हो गया। नतीजन यह कहना पड़ रहा है कि भगवान का प्यार चाहते हो तो प्यारे नाक का चक्कर छोड़ो। अकेला मैं थोड़े ही यह कह रहा हूं, बड़े बड़े संत भी ऐसा ही कह गये हैं। एक तो रामकृष्ण परमहंस ने ही कहा जहां लज्जा है वहां भगवान नहीं आते। गोपियों को निर्वस्त्र होना ही पड़ता है। आखिर भगवान से क्या छुपा है, जो छुपाना चाहते हो।
तुम्हीं तुम हो तो फिर ये हैसियत अपनी कहां रखूं
कहां रखूं जेहन को और ये तबियत कहां रखूं
गये वो दिन कि पर्दा था मेरी भी हैसियत कुछ थी
बताओ हे प्रभु अपनों में अब खुद को कहां रखूं
जब तक जगत से लाज लगती है, मोह और शोक पिंड नहीं छोड़ते। लाज का राखनहार एकमात्र वह ही है ऐसा मानकर क्यों नहीं अपनी सारी लाज उसके हवाले कर देते। द्रौपदी की लाज रखने में क्या चीर की कोई कमी पड़ी। ऐसे जिओ कि जिन्दगी जैसे एक खुली किताब हो। आर-पार पारदर्शी।
उसके करीब मैं था बियाबान की तरह
वह ढल रहा था मुझमें तूफान की तरह
शर्मिन्दा होना खुद अपने आप को नकारना है, कभी गौर किया, हुजूर।
शून्य-काल
ये हैं चंद बातें जो खुद अपने आपसे हैं.. आप तजवीजिए कि यहां आपके लायक क्या है
Thursday, April 24, 2008
Tuesday, March 4, 2008
आज बस इतना ही
मित्रों, चलिए शुरू करते हैं.. शून्य-काल का सीधा सा मतलब मेरे लिए है फुरसत का वक्त। और, इस ब्लाग के जरिए हम चाहते हैं कि जो कुछ हम दिल में सोचते हैं..सीधे-सीधे आपके सामने रख सकें। मतलब, बगैर उसे तोड़े-मरोड़े हुए। तमाम जटिलताओं के बीच हमें जो यह जिन्दगी मिली हुई है... अक्सर चूकती हुई महसूस होती है। जरूरत है कि हमारी सच की प्यास जगी रहे। इसलिए तमाम छोटी-मोटी चीजों के बीच जो जीवन के सूत्र बिखरे पड़े हैं... इस ब्लाग के माध्यम से हम उन्हें रोजबरोज आपके साथ बांटने की कोशिश करेंगे, भरसक ईमानदारी के साथ। आज बस इतना ही।
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