कहा जाता है कि जब भगवान आदमी को बना चुका तब उसने अपना फावड़ा उसके चेहरे पर उलट कर रख दिया जिससे आदमी की नाक बन गयी। और इस तरह आदमी के चेहरे पर नाक के तैयार होते ही भगवान ने उससे विदा ले ली। इधर आदमी नाक के चक्कर में उलझ गया। दुनिया नाक को बहुत बड़ी चीज के रूप में गिनती है। एक तरफ अपनी नाक बचाने के चक्कर में आदमी की दुनिया सुलझने के बजाय उलझती ही चली गयी, दूसरी तरफ आदमी रूहानी रोशनी से महरूम हो गया। नतीजन यह कहना पड़ रहा है कि भगवान का प्यार चाहते हो तो प्यारे नाक का चक्कर छोड़ो। अकेला मैं थोड़े ही यह कह रहा हूं, बड़े बड़े संत भी ऐसा ही कह गये हैं। एक तो रामकृष्ण परमहंस ने ही कहा जहां लज्जा है वहां भगवान नहीं आते। गोपियों को निर्वस्त्र होना ही पड़ता है। आखिर भगवान से क्या छुपा है, जो छुपाना चाहते हो।
तुम्हीं तुम हो तो फिर ये हैसियत अपनी कहां रखूं
कहां रखूं जेहन को और ये तबियत कहां रखूं
गये वो दिन कि पर्दा था मेरी भी हैसियत कुछ थी
बताओ हे प्रभु अपनों में अब खुद को कहां रखूं
जब तक जगत से लाज लगती है, मोह और शोक पिंड नहीं छोड़ते। लाज का राखनहार एकमात्र वह ही है ऐसा मानकर क्यों नहीं अपनी सारी लाज उसके हवाले कर देते। द्रौपदी की लाज रखने में क्या चीर की कोई कमी पड़ी। ऐसे जिओ कि जिन्दगी जैसे एक खुली किताब हो। आर-पार पारदर्शी।
उसके करीब मैं था बियाबान की तरह
वह ढल रहा था मुझमें तूफान की तरह
शर्मिन्दा होना खुद अपने आप को नकारना है, कभी गौर किया, हुजूर।
ये हैं चंद बातें जो खुद अपने आपसे हैं.. आप तजवीजिए कि यहां आपके लायक क्या है
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1 comment:
नाक को लिकर अच्छा लिखा आपने। हिन्दी में एक हास्य व्यंग्य लेखक हुए हैं -हरिशंकर परसाई। उन्होने भी इस विषय को उठाया है। वहाँ नाकों के विभिन्न रूप भी दिखाए हैं- लोहे की नाक, कलम होने वाली नाक, नाज़ुक नाक ,,
अन्ततः सन्देश वही है जो आपने दिया है। प्रसंग और भी सुन्दर बनाया जा सकता था। लिखते रहें। सस्नेह
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